कुछ मेरी कुछ तुम्हारी

Anupam Mishra

कुछ मेरी कुछ तुम्हारी : ह्रदय के शब्दभेदी वाण Few Words of mine & few of yours that hit like arrows in heart मैं सभी काव्य प्रेमियों के लिए प्रचलित कवियों के काव्य को अपना स्वर दूंगी और कुछ अपने और आपके अनुभव भी साझा करती रहूंगी आइये आप और मैं मिल के एक दूसरे को प्रोत्साहित करते हैं और अपनी प्रेरणा एक दुसरे के साथ साझा करते है।मिलकर हम हर मुश्किल को आसान बनाते है, चलिए शब्दों के औजार से शब्द नगरी बसाते हैं और प्रेम की अग्नि जलाते है। Together we make a difference.So let's join our hands to make our world a place for all of us. Thank you so much for all your love, cooperation & appreciation. read less
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Episode 22. मुझमे है राम मुझी में रावण
15-09-2021
Episode 22. मुझमे है राम मुझी में रावण
प्रिय दोस्तों आप सबसे अब तक बहुत सारा प्यार और आशीर्वाद मिला है हमें।  हर किसी से कुछ न कुछ सीखने को जरूर मिला है।  आप सबके लिए मैंने एक कविता का पाठ किया है। ये मेरी सबसे पुरानी कविताओं में से एक है जो कितनी ही कविताओं के लिखने पढ़ने के बाद भी हमेशा मेरे जेहन से निकल पड़ती है क्यूंकि ये वो सीख है जिसमे लोग साड़ियां लगाकर भी नहीं समझ पाते।  मैंने भी जब लिखा था तब से अब तक मुझमे न जाने कितने बदलाव आये , कितनी समझ में परिवर्तन आया पर जो भाव इस कविता में निहित है वो ज्यों का त्यों है। उम्मीद है मेरा ये काव्य पाठ का प्रयास आपको पसंद आएगा। यदि पसंद आये तो अपने प्रियजनों के साथ अवश्य साझा करें। और यदि इस पर कोई भी दो शब्द कहने का वक्त मिले तो बेझिझक होकर कहें आपकी हर बात प्रेम से स्वीकार है हमें आप सबकी सखी अनुपम मिश्र