चक्रव्यूह को भेदों is a grand contest brought to by Scribbling Inner Voice, अंदर की आवाज़ and कलम की ध्वनि. The competition comprises of 2 rounds and contains amazing perks for winners and participants
More about Vedant Dave : edant Dave, hails from Ahmedabad,Gujarat. Completed his schooling from Mehsana and is pursuing Bachelor of Engineering from Ahmedabad. He calls himself 'फ़नकार'(Artist).
•Where to catch 'Vedant Dave' : ☆Instagram - Vedantdave3011
•Where to read 'Vedant Dave' : ☆Matrubharti
कोरोना के कारण भूखे ओर बेघर मजदूर की भगवान को धमकी :
"ए ऊपरवाले.....खुदा.....भगवान.....
इतना कठोर क्यू बना बेठा है?जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!!
माना, माना कि काफी हद तक कच्चे है।मगर.......जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!!
तूने ही, हम इन्सानो को बनाया;कडवा है पर मानता हूँ की,आज हम ही तुझे बना रहे है।मगर रूठना छोड़ अब, सब मिल कर तुझे मना भी तो रहे है।।जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!!
मेरा काम मजदूरी है;लेकिन आज, यही बनी मेरी मजबूरी है।अरे, घी वाली रोटी की किसे पड़ी है.....मुझे ओर मेरे ईस मासूम बच्चे को तो खाना सूखा ही चलेगा;रहेम कर मेरे मौला, वरना ये तेरा बच्चा आज भी भूखा ही मरेगा!.......जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!!
माथे पे छत ओर दो वक्त का खाना,इतना ही केवल सपना मेरा।पूरी दुनिया तो धिक्कार ती है ही.....पर क्या तू भी अब ना रहा मेरा!!मै ओर मेरा बच्चा, आज अकेले है।जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!!
लूँट-फाट, भ्रष्टाचारी, काला-बाजारी, चोरी....ये सब करने वाले तो आज भी मजा ही कर रहे है।महेनत-मजदूरी कर के गलत तो हमने ही किया है ना,इसिलिए तो हम ही भोगत ये सजा रहे है।।अब तो अनदेखा ना कर......जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!!
आत्महत्या!!......केसी आत्महत्या!?......मर तो चुका हूँ;मेरे छ साल के मासूम को भूखा रख कर।.........अब तुझ पर से भरोसा उठ रहा है!क्यूँकी, ये मासूम अब तक भूखा मर रहा है!!..........चल, अब तो सब ठीक कर दे।जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!!
गजब है ना....एक गरिब ईस देश में,हमेशा ही रह जाता है केवल बन के एक गरिब;बिचारे के पास, है भी तो नहीं ओर कोई तरकीब;हमेशा अकेला ही खड़ा, कोन आता है उसके करीब?........तुझे जरा भी शरम नहीं आती!...तेरे पास सब कुछ है, फिर भी तेरी दान-पेटी हमेशा भरी की भरी....क्यूँ?.....ओर तेरा ये बच्चा, तडप रहा है फिर भी उस गरिब की झोली हमेशा खाली की खाली....क्यूँ?.........तेरा आशीर्वाद,हा......हा.......ये ही तेरा प्रसाद!चलो, उसके दो दाने खिलाकर भी पेट को खाना क्या होता है? उसकी कुछ अहमियत का दिलासा दे शकु।मगर, तेरे ये लोग तो उस प्रसाद की भी किंमत लेते है!!फिर, वो भी तो केसे मैं पा शकु?जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!!
अंतिम बार कह रहा हूँ,अभी भी जो तू रहेगा मौन....तो अब जब भी,मेरा ये मासूम मुस्कुरा कर मुझ से कहेगा, "पापा, सब ठीक हो जाएगा। उपर भगवान बेठे है! वो स......ब देख रहे है.......वो बोहोत अच्छे है।"तब मैं उससे पूछूँगा,"बेटा, ये भगवान कौन?".......चल, सब कुछ वापस से ठीक कर दे।मुझे भी तो यहीं कहना है,"हा बेटा.....भगवान बोहोत अच्छे है!!"............जेसे भी हैं, आख़िर तेरे ही बच्चे हैं!!